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Thursday, 13 August 2015

कई रंग मिलते है मेरे आंसुओ के समंदर में / गिरगिटी रंग से लोगों ने मुझे छला जो था//

कहाँ गया वो हसीन वक्त बचा जो था
दर्द बे परवा है जख्म से जो अभी नुचा जो था

कई रंग मिलते है मेरे आंसुओ के समंदर में
गिरगिटी रंग से लोगों ने मुझे छला जो था

एक शाम को दोपहर समझ बैठा
वक्त ने कुछ ऐसे डसा जो था

मुस्कानं भी कुछ खौफनाक लगती है
किसी मुस्कान ने मुझे ऐसे ठगा जो था

ज़िंदगानी मर्द की एक हवालात ऐ ख्वाब है
मेरे बूढ़े बाप ने मुझसे कभी कहा जो था

करो कुछ काम तो ऐ सरफ़राज़ वक्त के साये में
लाओ ताकत जिसमें खुदा को पाने का नशा जो था

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