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Monday, 22 June 2015

अखलाक पे अख़्लास पे ईमान पे फ़ित्ना

अखलाक पे अख़्लास पे  ईमान पे फ़ित्ना
जो करलो कोई बात तो हर बात पे फ़ित्ना

मोअज़्ज़िन की अजान हो या मंदिर से कोई शोर
यहाँ होने को हो जाता है हर बात पे फ़ित्ना

यहाँ  काम नही कोई फकीरों व शहँशा का
जो करलो कोई  काम तो उस काम पे फ़ित्ना

फारिश की जमीन हो या अफ़ग़ा का कोई सेहरा
इस धरती के हर जर्रे के नाम पे फ़ित्ना

बड़ा बनके कोई दिखाए, जो  हो कोई बड़ा
फिर रुक जाये झगड़ा और किस बात पे फ़ित्ना

इंसान है तुझको जाना इस  दारेफानी से
लड़ता है क्यों तू और किस बात पे फ़ित्ना 

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