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Sunday, 13 March 2016

दिल व दिमाग

किसी के दिल का दर्द आदमी तब तक जान सकता है जब तक उसे अपने दिल के ज़िंदा होने का एहसास हो। जब दिल मुर्दा हो जाये तो इंसान क्रूर बन जाता है। उसको भावनाओ की कोई परवाह नही होती। और इंसान को इंसान रहने के लिए उसके दिलका ज़िंदा होना  जरुरी है। क्यूंकि बिना भावनाओ के इंसान का आस्तित्व एक मशीन जैसी है। भावना दिल से आती है  दिमाग तो एक रोबोट जैसा है जिसमे आपने जो डाला है वो उसको संचालित करता है। मगर आज कल लोग दिल से ज्यादा जोर दिमाग  पे लगाते हैं और नतीजा आपके सामने है। इंसानी ज़िन्दगी मशीन और भावनाहीन बनती जा रही है।
उदहारण के केलिए जैसे .... बच्चों को दिमाग लगाने की बात कहते हैं और इस करम में दिलके सुनने की  मनाही होती है और वो बड़ा होकर दिमाग ही लगता फिरता है और तब हम कहते हैं "पता नही कैसे बिगड़ गया इसके अंदर कोई सेंस नही है"। मगर ये सब तो हमने खुद किया है।

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