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Wednesday, 9 March 2016

वो मुलाक़ात रहमत नही ज़हमत है।

कितना अजीब है न सालो बाद आप किसी के मिलो और बादमे पता चले वो मुलाक़ात रहमत नही ज़हमत है। बहुत अफ़सोस है अपने आप पे के मैं इतने समझदार क्यों नही हूँ। ये दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गयी मगर हम आब भी वहीँ बैठे हैं। तालीम और सलाहियत में कोई कमी नही मगर वो सलाहियत का दुरूपयोग और अपने आपको सबसे ऊपर समझना इंसान की बड़ी भूल है। अल्लाह पाक ही जो किसी को के लिए खड़ा करता है और किसी को किसी के  खिलाफ। जब एक पत्ता उसकी मर्जी के बिना नही हिलता तो कोई मुझे कैसे नुक्सान पहुंचा सकता है। 

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