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Monday, 19 January 2015

बरसात की रात और सुनसान राहें

एक सुनसान सड़क पर और क्या होगा
जब जिंदगी ना मुकम्मल हो तो क्या होगा

इस सरसराती हवाओं वाली बरसात की रात
शायद बादलों ने कोई ग़ज़ल कह दिया होगा

शोर करती हुई आसमान से गिरतीं ये बुँदे
जैसे मकता पे वाह वाह कह दिया होगा

इन बिजलियों में भी एक तूफ़ान सा मचा है
कोई शायर है जो मैखाने को चल दिया होगा

ये तेज़ बादलों की गरग्राहट और फिर रौशनी
मुमकिन हो की चाँद आज कहीं  छुप गया होगा 

दूर तक फैला सड़को पे बेबस सन्नाटा
जाहिर है की हर कोई डर गया होगा

मैं ही हूँ अकेला इस गुमनाम सड़क पर
शायद के महबूब इधर या उधर गया होगा

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