दुनिया की भीड़ में लड़खड़ा गए अब कहीं संभलते संभलते
जब आय अबुरा वक्त बुझ गयी चिराग ऐ सेहर कहीं जलते जलते।
वादो इरादों में उलझा रहा ज़िन्दगी भर कर दर किनार सबकुछ
जब चला डंडा ऐ कौनैन तो गिरने लगे हम कहीं चलते चलते।
भूल बैठा के मुसाफिर हु एक रह गुज़र का
देर हो गयी अब घरसे कहीं निकलते निकलते।
लोगों ने देदिया कांधा खली हाँथ बे जेब कफ़न में
देर हो गयी उस दिन भी हमें कहीं संवरते संवरते।
जब आय अबुरा वक्त बुझ गयी चिराग ऐ सेहर कहीं जलते जलते।
वादो इरादों में उलझा रहा ज़िन्दगी भर कर दर किनार सबकुछ
जब चला डंडा ऐ कौनैन तो गिरने लगे हम कहीं चलते चलते।
भूल बैठा के मुसाफिर हु एक रह गुज़र का
देर हो गयी अब घरसे कहीं निकलते निकलते।
लोगों ने देदिया कांधा खली हाँथ बे जेब कफ़न में
देर हो गयी उस दिन भी हमें कहीं संवरते संवरते।
Awesome
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