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Friday, 18 September 2015

पढ़ा दो वक्त की नमाज और हम जन्नती हो गए
एक दिन पसीना क्या निकला हम मेहनती हो गए।

देखे बड़े बेपरवा नज़ारे इस जहाँ में
कोई न बच स्का सब जहन्नमी हो गए ।

रोक पाया न मैं अपने इंसानी वजूद को या रब
देखा जो बाजार खुली खिरकी और नट खटी हो गए ।

क्या कोई इन अफ़सुर्दा  ख़्यालात में ज़िंदा है
हम किस काडर यहाँ उलझ के जहन्नमी हो गए।

किया तुमने अगर किताबों पे अमल ऐ सरफ़राज़
कुछ लोग यहाँ मरने से पहले ही जन्नती हो गए।

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