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Thursday, 24 December 2015

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो
इंसानियत मर ही जाती है जब दिल ही टुटा हो।

कुछ वक्त  गुज़ारा था  उलझी सी तमन्ना में
ज़िन्दगी बदतर नज़र आती है जब साथ ही छूटा हो ।

यही कीमत थी मेरे परवाज़ व रफ़्तार  की ऐ  रब
जहां ज़िन्दगी ने मासूम को कई बार लूटा हो।

कैसे परखून मैं हमदर्द वो आश्ना को ऐ  सरफ़राज़
चेहरे पे चेहरा डाले सिर्फ इंसानियत का ही मुखौटा हो।
 

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