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Sunday, 13 December 2015

बात बढ़ती रही और दिल फफकता रहा।

मैं था बेताब और जेहन भी  कहीं उलझा रहा
बात बढ़ती  रही और दिल फफकता  रहा।
 
लोग कहते हैं ये किसी के चुराता हूँ मैं अशआर
क्या खबर उन्हें दिल टूट कर हर रात बिखरता रहा।

कहीं दूर जब सितारों ने की सरगोशी
मैं ख़्वाबों में अपने नग्मे बुनता रहा।

मेरे इकबाल पे कोई तकरार न कर ऐ दोस्त ऐ जिगर
जब लिखूं दिल की बात बस ये जुमला बा जुमला बनता रहा।

खून ऐ जिगर से लिखता हूँ मैं अपने दिल की बात
गर कोई शक करे तो बस खून मेरे दिल बहता रहा।

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